कुछ सार्थक हो जाए इस उम्मीद के साथ - डॉ मोहन नागर
म प्र के प्रायवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस हाल ही में प्रकाशित हुई .. किसी भी कॅालेज की फीस 5 लाख से कम नहीं यानि पांच साल के 25 लाख ।
इसमें किताबों से लेकर रहने खाने का खर्च जोड़ें तो अकेले M. B. B. S. का खर्च ही 40 - 50 लाख बैठ रहा है अब।
इसमें किताबों से लेकर रहने खाने का खर्च जोड़ें तो अकेले M. B. B. S. का खर्च ही 40 - 50 लाख बैठ रहा है अब।
जाहिर है कि कोई गरीब से लेकर मध्यम वर्गीय परिवार का बच्चा अब प्रायवेट मेडिकल कॉलेज से डाक्टर बनने की सोच भी नहीं सकता ।
लिहाजा सहारा बचता है बस सरकारी मेडिकल कॉलेज ..
लिहाजा सहारा बचता है बस सरकारी मेडिकल कॉलेज ..
एक धन्नासेठ आंकलन करता है कि 25 - 30 लाख फीस देने से अच्छा है व्यापम घोटाले जैसे रास्ते से लेकर पेपर खरीदकर सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़वा दिया जाए बच्चे को .. और फिर अच्छे प्रायवेट स्कूल की शुरुआती पढ़ाई से लेकर कोचिंग वगैरह तो है ही ।
लिहाजा अब 90% के ऊपर लखपतियों करोड़पतियों के बच्चे ही डाक्टर बन रहे हैं सरकारी मेडिकल कॉलेजों से लेकर प्रायवेट मेडिकल कॉलेजों में ।
ये वे बच्चे हैं जिन्होंने कभी गांव की जिंदगी नहीं देखी .. न छोटे कस्बों की समस्याएं जानते हैं न ही वहाँ रह सकते हैं लिहाज़ा एक दो साल का बांड भी हो तो कुछ न कुछ करके या तो वे उसे टाल देते हैं या फिर जैसे तैसे पूरा कर फिर शहर जहां उनके धन्नासेठ बाप ने दो पांच से लेकर सौ दो सौ करोड़ का अस्पताल प्लान कर रखा है या विदेश की टिकट ।
इसके चलते ही शहरों में गली गली कुकुरमुत्तों से अस्पताल बढ़ रहे हैं और वहीं गांव से लेकर कस्बों तक के सरकारी अस्पतालों में केवल बीस से पचास प्रतिशत डाक्टर .. कहीं कहीं तो दस प्रतिशत ही । और प्रायवेट अस्पताल - शून्य।
आने वाले समय में कुछ अच्छा नहीं होना बल्कि स्थिति और बिगड़ने वाली है क्योंकि भविष्य में ऐसे बच्चे ही डाक्टर बनने वाले हैं जिनमें गांव कस्बे लौटने वाले डाक्टर और और कम होने वाले हैं।
सरकार यदि चाहती है कि गांव कस्बों की हालत सुधरे तो उसे कम से कम नियम बनाकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बीस तीस लाख और इससे ज्यादा सालाना कमाने वाले धन्नासेठों के बच्चों का प्रवेश निषेध ही कर देना चाहिए और केवल गरीब से लेकर मध्यमवर्गीय परिवार के मेघावी बच्चों को ही प्रवेश देना चाहिए जिसमें कुछ प्रतिशत गांव के बच्चों का हो क्योंकि ये बच्चे ही हैं जो गांव कस्बे लौट सकते हैं और छोटी जगह में अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
गरीबी की कोई जात नहीं होती न धर्म .. ब्राह्मण भी गरीब हैं इस देश में .. ठाकुर भी .. दलित भी .. मुसलमान आदि भी .. पर इनके बच्चे भी प्रतिभाशाली हैं साहब .. बहुत मेहनत करते हैं और जायज हक रखते हैं अच्छे कैरियर का ! पर चिकित्सा पेशे में इनके बच्चों के लिए रास्ते बंद होते देख रहा हूँ .. इसलिए ये मंथन आज .. शत प्रतिशत आरक्षण दीजिए आर्थिक आधार पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कि वहाँ केवल गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार के होनहार बच्चे पढ़ें जो गांव कस्बों में सेवाएं दें ( जारी स्वरूप में ही ) .. वे जानते हैं छोटी जगह की तकलीफ .. वहाँ रहने की आदत है उन्हें .. रह लेंगे . धन्नासेठ के बच्चों को लाख रुपये तन्ख्वाह भी दो तो नहीं पहुंचना उसे गांव कस्बे ये तय मानिए । उसे शहर में दो चार से लेकर सौ करोड़ का अस्पताल ही खोलना है तो प्रायवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़े ना .. K. G से लेकर 12th तक पढ़ते आए DPS .. Belabong .. टाइप स्कूल की तरह जहां कोई गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार का छात्र नहीं पढ़ सकता था उसके साथ और चलाए फिर फाइव स्टार होटल सा अस्पताल भोपाल से लेकर दिल्ली तक ..
और भी बहुत कुछ जो शायद रखूँगा यहाँ पटल पर फिलहाल ये परिचर्चा इसलिए कि लोग जानें कि - चिकित्सा जैसे महान पेशे में इतनी व्यवसायिकता क्यों बढ़ रही है ? पचास लाख खरच कर बना डाक्टर क्या खाक संवेदनशील होगा ? करोड़ों लगाए हैं जिसने अस्पताल बनाने वो क्या रिकवरी नहीं करेगा अपने पैसों की ? जहां जन के लिए बनाई गई सरकार व्यवस्था में तक कोई चुनाव के पहले का गरीब नेता से लेकर मंत्री तक अगले चुनाव तक अरबपति हो जाता है जनता की सेवा करने के नाम पर ??? वहाँ कोई धन्नासेठ क्या छोड़ने वाला है मरीजों को ? चार के चार करोड़ करने की मनसा रखने वाले इस दौर में वो चार के चार चार लाख तो बनाएगा .. बस इसलिए ही ये चक्र और चिकित्सा विधा का महान सिद्धांत रसातल की ओर।
कोई जायज मित्र हो सके तो ये बात पहुंचाए सत्ता पक्ष तक .. शायद उचित लगे उन्हें भी। बाकी .. कुछ और कह सका सार्थक तो जरुर जल्द ही ..इसे मेरा व्यक्तिगत विचार न समझें .. ये शायद आपको आपकी ही बात लगे जो आप समझ नहीं पा रहे थे । इसके विपक्ष के लोगों से भय क्या रखना ? क्योंकि ये वे लोग हैं जिनकी सामाजिक प्रतिबद्धता शून्य है .. उनके लिए ये महज एक धंधा है .. चार के चालीस वाला।
कम मिलेंगे लोग इसपर कुछ कहने वाले फिर भी प्रतिक्रिया का इंतजार .. कम से कम कुछ कहें ही .. क्योंकि अब जन के सार्थक प्रतिरोध की कल्पना भी सपने देखने जैसी है .. अब तक तो ये मांग उठ जानी थी। 😞😞
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